#शिया मातम क्यों करते है
Explore tagged Tumblr posts
Text
मुहर्रम क्यों मनाया जाता है, जानिए इसका पूरा इतिहास
मुहर्रम क्यों मनाया जाता है, जानिए इसका पूरा इतिहास #मुहर्रम #muharam #muharam2020
मुस्लिम समुदाय का मातमी पर्व मोहर्रम मनाया जाता है. दरअसल मोहर्रम एक महीना है, इसी महीने से इस्लाम धर्म के नए साल की शुरूआत होती है. मोहर्रम की 10 तारीख को हजरत इमाम हुसैन की शहादत की याद में मातम जाता है. इस दिन हजरत इमाम हुसैन के फॉलोअर्स खुद को तकलीफ देकर इमाम हुसैन की याद में मातम मनाते हैं. चलिए बताते हैं आपको इससे जुड़ा हुआ पूरा इतिहास…
मुहर्रम क्या है
मुहर्रम इस्लामिक वर्ष का पहला…
View On WordPress
#Quotes on Muharram in Urdu#Quotes on मुहर्रम इन हिंदी#इमाम हसन की कहानी#इमाम हुसैन कर्बला स्टोरी#कर्बला का युद्ध#कौन हैं इमाम हुसैन#ताजिया#भारत में मोहर्रम का त्यौहार कैसे मनाया जाता है#महिलाएं मुहर्रम कैसे मनाती हैं#मुहर्रम 2020#मुहर्रम का इतिहास#मुहर्रम क्या है#मुहर्रम क्यों मनाया जाता है#शिया मातम क्यों करते है
0 notes
Text
Muharram पर इमाम हुसैन की याद में नम हुईं लोगों की आंखें
आज देश दुनिया में Muharram मनाया जा रहा है। Muharram का महीना 11 अगस्त से शुरू हो चुका है। Muharram का दसवां दिन आशूरा कहलाता है। इस दिन Muharram मनाया जाता है। इस साल 20 अगस्त को Muharram की दसवीं तारीख है। लाखों करोड़ों लोगों इमाम हुसैन के चाहने वालों की आंखें आज नम हैं।
जानें, क्यों खास है Muharram का दसवां दिन
Muharram महीने का दसवां दिन सबसे खास माना जाता है। Muharram महीने की दस तारीख को कर्बला की जंग में पैगंबर हजरत मोहम्मद के नवासे हजरत इमाम हुसैन की शहादत हुई थी। हजरत इमाम हुसैन ने इस्लाम की रक्षा के लिए खुद को कुर्बान कर दिया था। इस जंग में उनके 72 साथी भी शहीद हुए थे। कर्बला की जंग हजरत इमाम हुसैन और यजीद की सेना के बीच हुई थी। हजरत इमाम हुसैन का मकबरा इराक के शहर कर्बला में उसी जगह है जहां यह जंग हुई थी। यह शहर इराक की राजधानी बगदाद से 120 किलोमीटर दूर है।
कर्बला की जंग तकरीबन 1400 साल पहले हुई थी। यह जंग जुल्म के खिलाफ इंसाफ और इंसनियत के लिए लड़ी गई थी। दरअसल, यजीद नाम के शासक ने खुद को खलीफा घोषित कर दिया था और वो अपना वर्चस्व कायम करना चाहता था। उसने इसके लिए लोगों पर सितम ढाए और बेकसूरों को निशाना बनाया। वह हजरत इमाम हुसैन से अपनी स्वाधीनता स्वीकार कराना चाहता था। उसने इमाम हुसैन को भी तरह-तरह से परेशान किया लेकिन उन्होंने घुटने नहीं टेके। जब यजीद की यातनाएं ज्यादा बढ़ गईं तो इमाम हुसैन परिवार की रक्षा के लिए उन्हें लेकर मक्का हज पर जाने का फैसला किया। हालांकि, उन्हें रास्ते में मालूम चल गया कि यजीद के सैनिक वेश ��दलकर उनके परिवार को शहीद कर सकते हैं।
इसके बाद इमाम हुसैन ने हज पर जाने का इरादा छोड़ दिया, क्योंकि वह नहीं चाहते थे कि पवित्र जमीन खून से सने। उन्होंने फिर कूफा जाने का निर्णय किया, लेकिन यजीद के सैनिक उन्हें कर्बला ले गए। कर्बला में इमाम हुसैन पर बेहद जुल्म किया गया और उनके परिवार के पानी पीने तक पर रोक लगा दी गई। यजीद इमाम हुसैन को अपने साथ मिलाने के लिए लगातार दबाव बनाता रहा। वहीं, दूसरी तरफ इमाम हुसैन अपने मजबूत इरादों पर डटे रहे। यजीद के सैनिकों ने फिर इमाम हुसैन, उनके परिवार और साथियों पर हमला कर दिया। इमाम हुसैन और उनके साथियों ने यजीद की बड़ी सेना का हिम्मत के साथ मुकाबला किया। उन्होंने इस मुश्किल वक्त में भी सच्चाई का दामन नहीं छोड़ा और आखिरी सांस तक गलत के खिलाफ लड़ते रहे।
जानें क्यों मनाते हैं Muharram में मातम
Muharram की दस तारीख को बड़ी तादाद में मातम किया जाता है। यह मातम हजरत इमाम हुसैन की शहादत के गम में मनाया जाता है। Muharram में मुसलमान हजरत इमाम हुसैन की इसी शहादत को याद करते हैं। शिया मुस्लिम समुदाय के लोग 10 तारीख को बड़ी तादाद में ताजिया और जुलूस निकालकर गम मनाते हैं। जुलूस के दौरान पूर्वजों की कुर्बानी की गाथाएं सुनाई जाती हैं ताकि लोग धार्मिक महत्व और जीवन मूल्यों को समझ सकें।
#muharram#india#worldfestival#covid-19 guidelines#islam#muharram2021#tazia#national#astro#muslimfestival
0 notes
Text
आखिर क्यों मुहर्रम पर मनाया जाता है मातम? जानिए कैसे हुई इसकी शुरुआत
चैतन्य भारत न्यूज मुहर्रम इस्लामी महीना है और इससे इस्लाम धर्म के नए साल की शुरुआत होती है। इस साल 29 अगस्त से मुहर्रम की शुरूआत हो रही है। कहा जाता है मुहर्रम महीने की 10 तारीख को इमाम हुसैन की शहादत हुई थी, जिसके चलते इस दिन को रोज-ए-आशुरा भी कहते हैं। मुहर्रम का यह सबसे अहम दिन माना गया है। इस दिन जुलूस निकालकर हुसैन की शहादत को याद किया जाता है। तो आइए जानते हैं कैसे हुई मुहर्रम की शुरुआत और इसका महत्व। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({});
मुहर्रम की शुरुआत मुहर्रम मातम मनाने और धर्म की रक्षा करने वाले हजरत इमाम हुसैन की शहादत को याद करने का दिन है। मुहर्रम के महीने में मुस्लिम समुदाय के लोग शोक मनाते हैं और अपनी हर खुशी का त्याग कर देते हैं। कहा जाता है कि बादशाह यजीद ने अपनी सत्ता कायम करने के लिए हुसैन और उनके परिवार वालों पर जुल्म किया और उन्हें बेदर्दी से मौत के घाट उतार दिया। हुसैन का मकसद खुद को मिटाकर भी इस्लाम जिंदा रखना था। इसके बाद यह धर्म युद्ध इतिहास के पन्नों पर हमेशा-हमेशा के लिए दर्ज हो गया।
कैसे मनाया जाता है मुहर्रम मुहर्रम कोई त्योहार नहीं बल्कि इस्लाम धर्म के लोगों के लिए मातम मनाने का दिन है। शिया समुदाय के लोग मुहर्रम के दिन काले कपड़े पहनकर हुसैन और उनके परिवार की शहादत को याद करते हैं। हुसैन की शहादत को याद करते हुए सड़कों पर जुलूस निकाला जाता है और मातम मनाया जाता है। मुहर्रम की 9 और 10 तारीख को मुस्लिम समुदाय के लोग रोजे रखते हैं और मस्जिदों-घरों में इबादत की जाती है। मान्यता है कि मुहर्रम के एक रोजे का सबाब 30 रोजों के बराबर मिलता है। यह भी पढ़े... बकरीद पर क्यों दी जाती है बकरे की कुर्बानी? जानिए इसके पीछे की कहानी ईद 2019 : ये हैं दुनिया की 5 सबसे खूबसूरत और आलीशान मस्जिद, देखते ही होगा जन्नत का अहसास Read the full article
#ashuradatetimeimportance#kabhaimuharram#kaisehuimuharramkishuruaat#kiskiyaadmemanayajatahaimuharram#kyumanyajataahaimuharram#muharram2020#muharramparkyumanayajatahaimatam#आशुरा#इस्लामधर्म#इस्लामीमहीना#कबहैमुहर्रम#किसकीयादमेंमनायाजाताहैशिक्षकदिवस#कैसेमनायाजाताहैमुहर्रम#कैसेहुईमुहर्रमकीशुरुआत#क्योंमनायाजातामुहर्रम#मुहर्रम#मुहर्रम2020#मुहर्रमकामहत्व#मुहर्रमकीशुरुआत#रोजएआशुरा
0 notes
Text
शिया और सुन्नी सम्प्रदाय में क्या अंतर है?
शिया और सुन्नी दोनों एक ही अल्लाह को मानते हैं. मुहम्मद साहब को अल्लाह का आखिरी पैगंबर (दूत) मानते हैं. क़ुरान (कहा जाता है दुनिया में मुहम्मद साहब लेकर आए) को आसमानी किताब मानते हैं. दीन भी दोनों का ‘इस्लाम’ है. तो मियां फिर दिक्कत कहां हैं? क्यों शिया-सुन्नी में इतनी दूरियां हैं. क्यों नफरतों के बीज फूटते रहते हैं? इस्लाम एक. तीर्थस्��ल (मक्का) एक. लेकिन धड़े दो. ऐसा तब ही शुरू हो गया था जब इस दुनिया से पैगंबर मुहम्मद इस दुनिया से कूच कर गए. उनकी मौत के बाद विवाद पैदा हो गया कि इस्लाम की बागडोर कौन संभालेगा. कौन होगा जो मुसलमानों का नेतृत्व करेगा? सुन्नियों ने अबु बकर, उमर, उस्मान और फिर अली को अपना खलीफा मान लिया. जबकि शिया मुसलमान ने खिलाफत को मानने से इंकार कर दिया. शियाओं का कहना है जो पहले तीन खलीफा बने वो गलत तरीके से बने. अली को सुन्नियों ने चौथा खलीफा माना, जबकि शिया ने अपना पहला इमाम माना. खिलाफत की जगह शियाओं में इमामत ने ली. और फिर इस तरह शियाओं के 12 इमाम हुए. पहले अली, दूसरे अली के बेटे हसन, तीसरे हुसैन. हुसैन अली के दूसरे बेटे थे. इन सबको सुन्नी भी मानते हैं. लेकिन खिलाफत और इमामत के विवाद में सुन्नी और शिया में मतभेद हो गए. मुस्लिम आबादी में बहुसंख्य सुन्नी मुसलमान हैं शिया की तादाद बहुत कम है. दोनों समुदाय सदियों से एक साथ रहते आए हैं. दोनों की ज्यादतर धार्मिक आस्थाएं और रीति रिवाज एक जैसे हैं. त्योहार भी एक ही हैं. लेकिन ईरान से लेकर सऊदी अरब, लेबनान से सीरिया और इराक़ से पाकिस्तान तक इतने संघर्ष हैं कि दोनों समुदायों में तनाव सामने आता रहता है. इन राजनीतिक संघर्षों ने दोनों समुदायों के बीच की खाई को और गहरा किया है. ‘मोहर्रम’ पर है मतभेद ‘मोहर्रम’ इमाम अली के बेटे हुसैन की शहादत का इस्लामी महीना है. इस महीने की 10 तारीख को कर्बला (जो इराक़ में है) में हुसैन को क़त्ल कर दिया गया था. हुसैन की शहादत को लेकर शिया मुस्लिम मातम करते हैं. हुसैन के साथ कर्बला में क्या हुआ. किस तरह उनके बच्चों, साथियों को मारा गया उसको याद करके रोते हैं. खुद को खंजर से मातम करके ज़ख़्मी कर लेते हैं. ताजिये बनाते हैं. जबकि सुन्नी ये सब करना सही नहीं मानते. लखनऊ में शिया मुस्लिम मोहर्रम का जुलूस निकलते हुए. (Photo : PTI) शिया सुन्नी के दूर होने की वजह एक ये भी है कि शिया ये कहते मिल जाएंगे कि हुसैन को सुन्नी लोगों ने ही क़त्ल किया. जबकि सुन्नी कहते मिल जाएंगे कि शियाओं ने ही मारा और अब खुद ही रोते हैं. सुन्नी शियाओं के रोने को गलत बताते हैं. ताज़ियों को गलत बताते हैं. कई बार तो आपको कई सुन्नी लोग ये भी कहते मिल जाएंगे कि ताज़ियादारी एक तरह की मूर्ति पूजा है. और इस तर्क पर वो ये भी कह देते हैं कि शिया तो आधे हिंदू होते हैं. जबकि ये सच नहीं है. ये अल्पज्ञान की वजह है. और ऐसा भी नहीं कि सारे सुन्नी ऐसा मानते हैं. आपको सुन्नी मुसलमान मोहर्रम में शामिल होते मिल जाएंगे. जो शोक मना रहे होंगे. ताज़ियों का एहतराम कर रहे होंगे. शिया हुसैन की शहादत में पूरे सवा दो महीने शोक मनाते हैं. इस दौरान वो लाल, गुलाबी, पीले कपड़े नहीं पहनते. खुशियां नहीं मनाते. शिया औरतें कोई गहना नहीं पहनतीं. एकदम सादा पहनावा होता है. जबकि सुन्नी ऐसा कुछ नहीं करते. हुसैन को मानते हैं. दुःख मनाते हैं. लेकिन उनके यहां अपनी खुशियां मनाने से परहेज़ नहीं किया जाता. नमाज़ पढ़ने का तरीका नमाज़ पढ़ते दोनों समुदाय हैं. और पांच वक़्त की नमाज़ पढ़नी दोनों पर फ़र्ज़ है. लेकिन नमाज़ पढ़ने के तरीके ने दोनों को अलग खड़ा कर दिया. सुन्नी पांच वक़्त की नमाज़ पांच टाइम में पढ़ते हैं. लेकिन शिया सुबह की नमाज़ अलग पढ़ते हैं. दोपहर और तीसरा पहर की नमाज़ एक साथ दोपहर में एक बजे पढ़ते हैं. शाम और रात की नमाज़ एक साथ शाम में पढ़ते हैं. इस तरीके को सुन्नी गलत बताते हैं. जबकि शिया का तर्क है कि जैसे दोपहर के फौरन बाद तीसरा पहर का वक़्त शुरू हो जाता है. वैसे ही शाम और रात का. इसलिए एक साथ नमाज़ पढ़ी जा सकती है. सुन्नी मुस्लिम हाथ बांधकर नमाज़ पढ़ते हुए. (photo: http://shiachat.com) सुन्नी मुस्लिम हाथ बांधकर नमाज़ पढ़ते हैं और शिया मुस्लिम हाथ छोड़कर नमाज़ पढ़ते हैं. नमाज़ पढ़ने का तरीका भी एक बहस का मुद्दा है. जो दोनों के बीच दूरी पैदा करता है. सुन्नी दावा करते हैं कि जैसे वो नमाज़ पढ़ते हैं वो तरीका मुहम्मद साहब के नमाज़ पढ़ने का तरीका है. जबकि शिया इसे ख़ारिज करते हैं और अपने तरीके को मुहम्मद साहब का तरीका बताते हैं. कभी-कभी सुन्नी और शिया एक साथ नमाज़ पढ़कर दूरी को मिटाने की कोशिश करते हैं शिया मुस्लिम हाथ छोड़कर नमाज़ पढ़ते हुए. हाथ बांधे एक सुन्नी को भी इस तस्वीर में देखा जा सकता है. (photo: milli gazette) गलतफहमियां दोनों को और दूर कर देती हैं शिया और सुन्नी के बीच मज़हब को लेकर एक लंबी बहस है. शिया सुन्नी मुस्लिम की किताबों से तर्क को नहीं मानते. तो सुन्नी शिया मुस्लिम की किताबों के तर्क को नहीं मानते. तर्क और बहस अपनी जगह लेकिन दोनों समुदाय के बीच कुछ गलतफहमियां भी रहती हैं. और ये गलतफहमियां हर इलाके में नए-नए टाइप की मिल जाएंगी. एक गलतफहमी है कि शिया खाने में थूक कर खिलाते हैं. बस सुना है वाले तर्क पर ये गलतफहमी चली आ रही है. कट्टर सुन्नी शिया के घर का खाने से परहेज़ करते हैं. इस अफवाह के बारे में फर्जी कहानियां गढ़ ली गई हैं. जबकि ये सच नहीं है. ऐसी ही और भी गलतफहमियां हैं, जो सिर्फ सुना है वाले तर्क पर ही बनी हुई हैं. (ये भी पढ़िए : क्या शिया मुसलमान खाने में सचमुच थूक कर खिलाते हैं? ) एक बात ये चलती है कि सुन्नी कट्टर होते हैं. ये भी सच नहीं है. जब से वहाबियत ने पैर पसारे तब से ये कट्टरता तेज़ी से बढ़ी. सुन्नी भी अमन ओ सुकून के साथ रहना चाहते हैं. कुछ लोग होते हैं जो सुन्नी ही नहीं शियाओं में भी मिल जाएंगे, जो कट्टरता की बात करते होंगे. सुन्नी समुदाय के अंदर ये बात घर कर गई है कि शिया मोहर्रम में होने वाली मजलिस (सभा) में सुन्नियों के खलीफाओं को बुरा भला कहते हैं. सुन्नियों को गलत कहते हैं. जबकि शिया कर्बला में हुए हाल को बयान करते हैं. वहीं शिया कहते हैं सुन्नी शियाओं को कभी अपना दोस्त नहीं मानते. दोनों समुदाय एक दूसरे के यहां शादियां क्यों नहीं करते? इराक़ जहां सुन्नी और शिया का संघर्ष काफी रहता है वहां के शहरी इलाक़ों में हाल तक दोनों समुदायों के बीच शादी बहुत आम बात हुआ करती थी. शिया और सुन्नी में अंतर है तो सिद्धांत, क़ानून, धर्मशास्त्र और परंपरा का. इसी वजह से दोनों के लीडर में प्रतिद्वंद्विता बनी रहती है. दोनों समुदाय के बीच शादियां न होने की वजह सिर्फ इतनी ही है कि शिया शुरू के तीन खलीफा को बिल्कुल नहीं मानते. बस अली को मानते हैं. जबकि सुन्नी अली को भी मानते हैं. लेकिन मोहर्रम में सुन्नी मातम नहीं करते. अगर शादी होगी तोशिया सुन्नी एक दूसरे की परंपराओं को नहीं निभा पाएंगे. तब दोनों की शादीशुदा ज़िंदगी में परेशानी होगी. सच पूछो तो शादियां न होने की वजह से ही दोनों समुदाय के बीच नफरत मिटने का नाम नहीं ले रही. अगर शादियां होती तो दोनों के बीच की गलतफहमियां दूर होतीं. और दोनों समुदाय करीब आते. और फिर शिया-सुन्नी ‘मुसलमान’ हो जाते
0 notes
Text
आखिर क्यों मुहर्रम पर मनाया जाता है मातम? जानिए कैसे हुई मुहर्रम की शुरुआत
चैतन्य भारत न्यूज मुहर्रम इस्लामी महीना है और इससे इस्लाम धर्म के नए साल की शुरुआत होती है। इस साल मुहर्रम 10 सितंबर को मनाया जाएगा। कहा जाता है इस महीने की 10 तारीख को इमाम हुसैन की शहादत हुई थी, जिसके चलते इस दिन को रोज-ए-आशुरा भी कहते हैं। मुहर्रम का यह सबसे अहम दिन माना गया है। इस दिन जुलूस निकालकर हुसैन की शहादत को याद किया जाता है। तो आइए जानते हैं कैसे हुई मुहर्रम की शुरुआत और इसका महत्व। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({});
मुहर्रम की शुरुआत मुहर्रम मातम मनाने और धर्म की रक्षा करने वाले हजरत इमाम हुसैन की शहादत को याद करने का दिन है। मुहर्रम के महीने में मुस्लिम समुदाय के लोग शोक मनाते हैं और अपनी हर खुशी का त्याग कर देते हैं। कहा जाता है कि बादशाह यजीद ने अपनी सत्ता कायम करने के लिए हुसैन और उनके परिवार वालों पर जुल्म किया और उन्हें बेदर्दी से मौत के घाट उतार दिया। हुसैन का मकसद खुद को मिटाकर भी इस्लाम जिंदा रखना था। इसके बाद यह धर्म युद्ध इतिहास के पन्नों पर हमेशा-हमेशा के लिए दर्ज हो गया।
कैसे मनाया जाता है मुहर्रम मुहर्रम कोई त्योहार नहीं बल्कि इस्लाम धर्म के लोगों के लिए मातम मनाने का दिन है। शिया समुदाय के लोग मुहर्रम के दिन काले कपड़े पहनकर हुसैन और उन��े परिवार की शहादत को याद करते हैं। हुसैन की शहादत को याद करते हुए सड़कों पर जुलूस निकाला जाता है और मातम मनाया जाता है। मुहर्रम की 9 और 10 तारीख को मुस्लिम समुदाय के लोग रोजे रखते हैं और मस्जिदों-घरों में इबादत की जाती है। मान्यता है कि मुहर्रम के एक रोजे का सबाब 30 रोजों के बराबर मिलता है। यह भी पढ़े... बकरीद पर क्यों दी जाती है बकरे की कुर्बानी? जानिए इसके पीछे की कहानी ईद 2019 : ये हैं दुनिया की 5 सबसे खूबसूरत और आलीशान मस्जिद, देखते ही होगा जन्नत का अहसास Read the full article
#ashuradatetimeimportance#kabhaimuharram#kaisehuimuharramkishuruaat#kiskiyaadmemanayajatahaimuharram#kyumanyajataahaimuharram#muharram2019#muharramparkyumanayajatahaimatam#आशुरा#इस्लामधर्म#इस्लामीमहीना#कबहैमुहर्रम#किसकीयादमेंमनायाजाताहैशिक्षकदिवस#कैसेमनायाजाताहैमुहर्रम#कैसेहुईमुहर्रमकीशुरुआत#क्योंमनायाजातामुहर्रम#मुहर्रम#मुहर्रम2019#मुहर्रमकामहत्व#मुहर्रमकीशुरुआत#रोजएआशुरा
0 notes